Friday 8 May, 2009

ये पप्पू कौन है?


''आज तो छुट्टी का दिन है...थोड़ी देर से उठना है, फिर घर में खाना-पीना और टीवी देखना। दिन तो घर पर ही बिताना है...फिर शाम को पूरी फैमिली के साथ बाहर जाना...घूमना-फिरना...मौज-मस्ती।''

ये है भारत में इलेक्शन के दिन मिडिल क्लास के दिनभर का प्लान। ध्यान दीजिए, इसमें कहीं भी वो बूथ पर जाना और वोट करना शामिल नहीं। वोटिंग के नाम पर ऑफिस से छुट्टी लेनेवाला शख्स वोटिंग बूथ पर जाने से कतराता है। लेकिन यही आदमी देश की दुर्दशा और पॉलिटिक्स के बारे में बोलना शुरु करता है तो रुकता नहीं.......एक प्रोफेसर की तरह बोलता ही चला जाता है।

आज इस टॉपिक पर मुझे इसलिए लिखना पड़ा कि कल यानि ७ मई को दिल्ली में लोकसभा के लिए मतदान का दिन था। ऑफिस के लिए निकला तो देखा- रोड पर जैसे मुर्दानी छाई थी। अमूमन १ घंटे में ऑफिस का रास्ता तय होता है, कल ३० मिनट में पहुंच गया। आश्चर्य हुआ, जैसे शहर सोया हुआ है। ऑफिस पहुंचा तो देखा- १० फीसदी से ज्यादा लोगों ने वोट नहीं डाला था।

लोगों ने भी कई प्रैक्टिकल मजबूरियां गिनाईं-

#अपने शहर से मेट्रोज में आए ज्यादातर लोगों का नाम वहां की लिस्ट में शामिल नहीं है। ये काम इतना जटिल है कि लोग वोटिंग से ही तौबा ही कर लेते हैं।

# ज्यादातर प्राइवेट ऑफिस में काम करनेवाले लोगों को छुट्टी नहीं मिल पाती।

# कई लोगों के नाम वोटर लिस्ट से गायब रहते हैं।

# रोज-रोज की भागम-भाग से परेशान आम आदमी एक दिन की एक्सट्रा छुट्टी एन्जॉय करना चाहता है और इसके लिए पप्पू बनने के लिए भी तैयार रहता है।

# सबसे बड़ी बात- मतदान अनिवार्य नहीं है, और भारतीयों की खासियत है सबतक कोई काम जरूरी न हो वो उसे टालते ही रहते हैं। शायद हम स्वभाव से आलसी हैं।

# लंबी चुनाव प्रक्रिया से उबकर भी कई लोग वोटिंग से तौबा कर लेते हैं- क्या महीने भर से एक ही खबर, एक ही काम- चुनाव..चुनाव...चुनाव....

अब आप ही बताइए, लोग पप्पू बन रहे हैं या उन्हें बनाया जा रहा है???????