आखिर मुरारी हीरो बन ही गया। बहुत दिनों से तमन्ना थी, खुद को सिल्वर स्क्रीन पर देखने की। लेकिन फिल्मी हीरो ने आकर सपनों को चकनाचूर कर दिया। पब्लिक सिर्फ सिनेमा हॉल जाकर हीरो के तमाशे देखती रही। वो अकेला चाहे तो पता नहीं कितने विलेन को मार गिराए...हीरोईन भी उसे ही मिलनी थी। हमारे पल्ले तो कुछ नहीं पड़ता था। लेकिन पता नहीं कैसे समय बदलता दिख रहा है। आज पब्लिक हीरो बन गई है। उसे सुनहले परदे पर दिखाया जा रहा है। उसके जज्बे को सलाम किया जा रहा है। उसके काम की सराहना की जा रही है। चाहे वो वेन्सडे का नसीररुद्दीन शाह हो या फिर आमिर का हीरो। उसमें पब्लिक को अपना अक्श दिखाई दे रहा है। पहली बार है कि उसके काम पर जनता को शर्म नहीं आ रही। उससे पब्लिक प्रेरणा ही ले रही है। ....शायद बॉलीवुड लेट से जागा है। लेकिन जागा तो सही। पब्लिक के आगे हीरो को झुकना पड़ा। आज पब्लिक ही हीरो है। उसका जज्बा ही उसे आगे का रास्ता दिखाएगा। इस जज्बे को सलाम।
आपका,
हिमांशु
Monday 8 December, 2008
फिर ठग लिया
हम फिर ठगे गए..... पेट्रोल पर 5 रुपए औऱ डीजल पर 2 रुपए दाम करके सरकार वाहवाही लूट रही है...सरकार खुश, पब्लिक गदगद...। औऱ क्या चाहिए। ये किसी ने नहीं देखा कि क्रूड ऑयल के दाम घटने के मुकाबले ये कमी बेहद कम है। राहत के नाम पर चुनावी खेल। क्योंकि आम चुनाव के ऐलान के ठीक पहले सरकार एक बार औऱ दाम घटानेवाली है। तबतक का अऱबों-खरबों का फायदा सरकार की जेब में। क्रूड के दाम बढ़ते ही हायतौबा मच जाती है लेकिन कमी के बाद इसकी सुध लेनेवाला कोई नहीं। सवा सौ प्रति बैरल से क्रूड के दाम गिरकर 40 डॉलर प्रति बैरल तक आ गए हैं। अनुमान है कि ये 25 डॉलर तक भी जा सकते हैं। लेकिन राहत के नाम पर झुनझुना...। वाह री जनता की सरकार। क्या इसे धोखाधड़ी नहीं कहा जाना चाहिए। फैसला आपके हाथ में है...आपका,-हिमांशु
Sunday 7 December, 2008
हम कैसा समाज बना रहे हैं
दरअसल मुझे कहना चाहिए था कि हम कैसे समाज का हिस्सा हो गए हैं, या फिर हमने ये कैसा समाज खड़ा कर दिया है...एक मुआयना करें तो पिछले दिनों तक एक बहुत ही दब्बू औऱ डरपोक टाइप की भीड़ का हिस्सा हो गए थे। एक ही बहाना था- मिडिल क्लास आखिर कर ही क्या सकता है... न पैसा है, न पावर और न ही पॉलिटिक्स। लेकिन लगता है मुंबई पर आतंकी हमलों ने हमारी आंखें खोल दी है। आज हमारी आंखों के सामने जो हम है- वो न डरा है, न दब्बू है। वो किसी भी ताकत से लड़ने की कूबत रखता है। इससे पहले भी शिवानी भटनागर और मधुमिता जैसे केसों में कुछ लोगों ने जागरुकता दिखाई थी लेकिन वो लोग आम नहीं थे। मेट्रो के एक खास बिरादरी से उनका नाता था। लेकिन इसबार हम सच्चे रूप में जागे दिख रहे हैं। अभी तो यही कह सकते हैं- टचवुड , कि ये जज्बा कायम रहे।
आपका,
हिमांशु
आपका,
हिमांशु
आम आदमी क्या सोचता है
अखबार अपनी लिखते हैं, टीवी अपनी दिखाता है। रेडियो पर खबरों से ज्यादा गाने पसंद किए जा रहे हैं। ऐसे में आम आदमी की फिक्र किसे है। सभी कहते हैं, ये आम आदमी की जुबां है... हम आम आदमी के बारे में बोल रहे हैं...लेकिन क्या १०-२० लोगों की सोच को लोगों की सोच कहा जा सकता है। .....
सोचने की बात है।......
पब्लिक को चावल-दाल से फुर्सत नहीं। जो समय बचा वो बच्चों के लिए है। फिर परिवार है, करियर है...ऐसे में असली आवाज दब जाती है।.....
लंब समय बाद आम आम आदमी जागा है। वो कुछ सोच रहा है,....वो कुछ कह रहा है। ,
उसे नजरअंदाज मत करें। वो आज का एंग्री यंगमैन है। उसकी सोच को दिशा देने में सहयोग दें।
लेकिन ये होगा कैसे-
किसी एक माध्यम पर भरोसा न करें। स्त्रोत कई हैं- सबसे जानकारी लें,... लेकिन निष्कर्ष खुद निकालें।... दोस्तों से बात करें।
ये जान लें कि आपसे बड़ा कोई जानकार नहीं, आपके अनुभव से अच्छा कोई तराजू नहीं।...
अपनी सोच को बांधे नहीं....उसे सबकी सोच बनने दें।
आपका
हिमांशु
सोचने की बात है।......
पब्लिक को चावल-दाल से फुर्सत नहीं। जो समय बचा वो बच्चों के लिए है। फिर परिवार है, करियर है...ऐसे में असली आवाज दब जाती है।.....
लंब समय बाद आम आम आदमी जागा है। वो कुछ सोच रहा है,....वो कुछ कह रहा है। ,
उसे नजरअंदाज मत करें। वो आज का एंग्री यंगमैन है। उसकी सोच को दिशा देने में सहयोग दें।
लेकिन ये होगा कैसे-
किसी एक माध्यम पर भरोसा न करें। स्त्रोत कई हैं- सबसे जानकारी लें,... लेकिन निष्कर्ष खुद निकालें।... दोस्तों से बात करें।
ये जान लें कि आपसे बड़ा कोई जानकार नहीं, आपके अनुभव से अच्छा कोई तराजू नहीं।...
अपनी सोच को बांधे नहीं....उसे सबकी सोच बनने दें।
आपका
हिमांशु
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