Wednesday 24 June, 2009

रिश्ते


जिंदगी
चल रही थी अपनी रफ्तार से
तभी आया
एक तूफान।
ढह गए सपने..
जमीनदोज हो गए ख्वाब...
और वो
देखता रह गया,
हाथ मलता...
कुछ न कर पाया
...क्योंकि
जिसे समझता था वो अपनी ताकत
उसके बस में कुछ नहीं था
न उसकी जिंदगी संवारना,
न उसकी अहमियत बनाना।
मौत की बात तो दूर...
जिंदगी से भी तौबा करने लगा वो।
.....इन सीमेंट के जंगलों से टकराकर
टूट गए थे उसके सपने...
चकनाचूर हो गई उसकी हैसियत...
मुश्किल मे फंसा वो
मांगता रहा हरेक से मदद
लेकिन सामने नहीं आया कोई,
उसकी मदद को।
अब सोचता है वो
क्यों रखे उसने ऐसे रिश्ते,
जो समय के साथ बदल जाते हैं,
जो हंसी के हर पल में उसके साथ रहे
लेकिन मुश्किल के झंझावात में फंसते ही,
दूर हो गए सब-
दोस्त...रिश्तेदार...शुभचिंतक...
जेहन में उसके आता है एक ही ख्याल-
क्या यही है,
रिश्तों की असलियत।

2 comments:

ओम आर्य said...

rishte sirf itane se nahi banate hai ..........rishto ko wistaar dena vi jaruri hota hai taki jamindoz hone se bachaya ja sake....

Udan Tashtari said...

जेहन में उसके आता है एक ही ख्याल-
क्या यही है,
रिश्तों की असलियत।

--और गहरा उतरना होगा इसे जानने के लिए.