अखबार अपनी लिखते हैं, टीवी अपनी दिखाता है। रेडियो पर खबरों से ज्यादा गाने पसंद किए जा रहे हैं। ऐसे में आम आदमी की फिक्र किसे है। सभी कहते हैं, ये आम आदमी की जुबां है... हम आम आदमी के बारे में बोल रहे हैं...लेकिन क्या १०-२० लोगों की सोच को लोगों की सोच कहा जा सकता है। .....
सोचने की बात है।......
पब्लिक को चावल-दाल से फुर्सत नहीं। जो समय बचा वो बच्चों के लिए है। फिर परिवार है, करियर है...ऐसे में असली आवाज दब जाती है।.....
लंब समय बाद आम आम आदमी जागा है। वो कुछ सोच रहा है,....वो कुछ कह रहा है। ,
उसे नजरअंदाज मत करें। वो आज का एंग्री यंगमैन है। उसकी सोच को दिशा देने में सहयोग दें।
लेकिन ये होगा कैसे-
किसी एक माध्यम पर भरोसा न करें। स्त्रोत कई हैं- सबसे जानकारी लें,... लेकिन निष्कर्ष खुद निकालें।... दोस्तों से बात करें।
ये जान लें कि आपसे बड़ा कोई जानकार नहीं, आपके अनुभव से अच्छा कोई तराजू नहीं।...
अपनी सोच को बांधे नहीं....उसे सबकी सोच बनने दें।
आपका
हिमांशु
Sunday 7 December, 2008
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