दरअसल मुझे कहना चाहिए था कि हम कैसे समाज का हिस्सा हो गए हैं, या फिर हमने ये कैसा समाज खड़ा कर दिया है...एक मुआयना करें तो पिछले दिनों तक एक बहुत ही दब्बू औऱ डरपोक टाइप की भीड़ का हिस्सा हो गए थे। एक ही बहाना था- मिडिल क्लास आखिर कर ही क्या सकता है... न पैसा है, न पावर और न ही पॉलिटिक्स। लेकिन लगता है मुंबई पर आतंकी हमलों ने हमारी आंखें खोल दी है। आज हमारी आंखों के सामने जो हम है- वो न डरा है, न दब्बू है। वो किसी भी ताकत से लड़ने की कूबत रखता है। इससे पहले भी शिवानी भटनागर और मधुमिता जैसे केसों में कुछ लोगों ने जागरुकता दिखाई थी लेकिन वो लोग आम नहीं थे। मेट्रो के एक खास बिरादरी से उनका नाता था। लेकिन इसबार हम सच्चे रूप में जागे दिख रहे हैं। अभी तो यही कह सकते हैं- टचवुड , कि ये जज्बा कायम रहे।
आपका,
हिमांशु
Sunday 7 December, 2008
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